Sikh Ten Guru Name [2020 Updated] – जाने सिख गुरुओं का पूरा इतिहास

आज हम आज बात करेंगे Sikh Ten Guru के बारे में। Sikh मज़हब के पैरोकार को सिख कहते हैं। Sikh पंजाबिस्तान का शब्द है जो संस्कृत भाषा से आया है।

आपको पता होगा की Sikh सारी दुनिया में फैले हुए हैं लेकिन इनकी ज़यादातर तादात भारत में है। दुनियाभर में सिखों की आबादी लगभग दो करोड़ तीस लाख है और इसका 60 फीसदी भारत के पंजाब प्रान्त में रहता है। History of 10 Sikh Gurus ये विषय भी इस लेख में बड़ी सरल भाषा में आपके लिए लिखा गया है ताकि आप Sikh Guru का इतिहास और जीवनी भी जान सकें।  

आईये अब Sikh Ten Guru के बारे में जानते हैं एवं इतिहास की सम्पूर्ण चर्चा करते हैं विस्तार के साथ।

सिख धर्म शूरवीरों का धर्म कहलाता है। पूरी दुनिया में 25 मिलियन से अधिक सिख रहते हैं। पंजाबी भाषा में ‘सिख’ शब्द का अर्थ ‘शिष्य’ होता है। सिख भगवान के वे शिष्य हैं जो दस सिख गुरुओं के लिखी गई बातों और दी गई शिक्षाओं का पालन करते हैं। सिख धर्म की स्थापना गुरु नानक (1469-1539) द्वारा की गई थी और नौ अन्य गुरुओं ने इसका नेतृत्व किया। बाद में दसवें गुरु , गुरु गोबिन्द सिंह जी ने गुरु परम्परा को समाप्त करके गुरु ग्रन्थ साहिब को ही एक मात्र गुरु मान लिया था।

Sikh Ten Guru के नाम और उनका समय

  • पहले गुरु : गुरु नानक देव जी  (1469-1539)
  • दूसरे गुरु : गुरु अंगद देव जी (1539-1552)
  • तीसरे गुरु : गुरु अमर दास जी (1552-1574)
  • चौथे गुरु : गुरु राम दास जी (1574-1581)
  • पाँचवें गुरु : गुरु अर्जुन देव जी (1581-1606)
  • छठे गुरु : गुरु हरगोबिंद सिंह जी (1606-1644)
  • सातवें गुरु : गुरु हर राय जी (1644-1661)
  • आठवें गुरु : गुरु हरकिशन साहिब जी (1661-1664)
  • नौंवें गुरु : तेग बहादुर  जी (1665-1675)
  • दसवें गुरु : गुरु गोबिंद सिंह जी (1675-1708)

10 Sikh गुरुयों का इतिहास

[su_dropcap]1.[/su_dropcap] गुरु नानक देव जी (Guru Nanak Dev ji)

Sikh Ten Guru के इस लेख में सबसे पहले बात करते हैं श्री गुरु नानक देव जी की। गुरु नानक जी सिख समुदाय के संस्थापक और पहले गुरु थे।उनका जन्म  15 अप्रैल, 1469 को कार्तिक पूर्णिमा के दिन ‘तलवंडी’ नामक स्थान पर हुआ था।  गुरुनानक जी के पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता था। उनके जन्म के बाद ही तलवंडी का नाम ननकाना पड़ा जो अभी पाकिस्तान में है।

गुरुनानक जी का विवाह सुलक्खनी जी के साथ हुआ था और इनके दो पुत्र श्रीचन्द और लक्ष्मीचन्द थे। उन्होंने कर्तारपुर नामक एक नगर बसाया। यहीं पर सन् 1539 को गुरु नानक जी का देहांत हुआ था। चलिए और विस्तार से जानते हैं इनके जीवन काल के बारे में। श्री गुरु नानक देव जी का प्रकाश उस समय हुआ जब देश की विवस्था अस्त व्यस्त थी। जनता सामाजिक, धार्मिक और राजनितिक तौर पर निकल चुकी थी।

जनसधारण लोग निराशावादी, कायर, डरपोक बन चुके थे वे अपना सभ्याचार, संस्कृति त्याग चुके थे, हर एक ज़ोर धर्म परिवर्तन पर था। काली रुपी रात में अँधेरे की तरह लोग ज़िन्दगी जीने के लिए मजबूर थे। श्री गुरु नानक साहिब जी के प्रकाश ने हर तरह का अँधेरा दूर कर दिया।

गुरु नानक देव जी का जन्म कब हुआ था ?

Sikh पैगंबरी के बीच पहला स्थान साहिब श्री गुरु नानक देव जी का है। जिनका जन्म 1469 ईस्वी को राये पोए की तलवंडी, ननकाना साहिब जिला शेखुपुरा जो की मौजूदा समय में पाकिस्तान के बीच है वहां हुआ था।

गुरु नानक के पिता का क्या नाम था ?

नानक जी के पिता का नाम श्री महिता कालू राम जी था जो की एक पटवारी थे और माता जी का नाम तृप्ता देवी जी था। गुरु जी की एकलौती बहन जिनका नाम बेबे नानकी था वह श्री गुरु नानक देव जी से उम्र में 5 साल बढे थे।

नानक साहिब जी का बचपन

गुरु जी का बचपन तलवंडी में ही व्यतीत हुआ, 7 साल की उम्र में श्री नानक जी को गाँव के बालको के साथ पाठशाला भेजा गया। जहाँ पंडित गोपाल जी से हिंदी,पंडित बृज लाल से संस्कृत और मदरस्से के मौलवी जी से फ़ारसी की शिक्षा ग्रहण की। पाठशाला में पंडित और मौलवी गुरु नानक देव जी के मुंह से परमात्मा की बातें सुनकर हैरान रह जाते थे। नानक देव जी आम बच्चों की तरह नहीं थे वह शुरू से ही संतोषी और विचारमान कीर्ति के मालिक थे।

जब वह अपने साथियों के साथ बैठते थे तो वह आँखें मीच कर करतार के नाम का उच्चारण करने लग जाते थे। शुरू से ही गुरु नानक साहिब जी संतों और फकीरों के पास बैठना पसंद करते थे। वह बड़े दानी स्वभाव के थे, धार्मिक वेदों के अनुसार जब इनकी उम्र 9 साल हुई तब पिता जी की तरफ से घर में रिश्तेदारों को बुलाया गया।

गुरु नानक देव जी की जनेऊ प्रथा

गुरु नानक साहिब जी अब बड़े हो गए थे इसीलिए जनेऊ की रस्म अदा करने को कहा गया। पंडित हरदयाल जी वैदिक मन्त्रों में मगन थे।

पिता महिता कालू जी ने गुरु जी को सुन्दर पोशाकें पहना कर बिरादरी के इकठ में ले गए। पंडित जी मन्त्रों का जाप करते करते जनेऊ डालने के लिए नानक जी के पास आये और गुरु नानक साहिब जी ने उनकी बाजू पकड़ ली और पुछा की आप मुझे ये जनेऊ क्यों पहना रहें हैं।

पंडित जी ने कहा इससे आप का धर्म में प्रवेश हो जाएगा। आप धर्मी हो जाओगे, यह हमेशा आप साथ देगा।

गुरु नानक देव जी ने जनेऊ पहनने से मना क्यों किया ?

जब ये जवाब पंडित जी से सुने तो नानक साहिब जी ने इस धागे से बने जनेऊ को पहनने से इंकार कर दिया। उन्होंने फ़रमाया की ये धागे का जनेऊ तो मैला हो जाता है, फिर नया लेना पड़ता है। जब मनुष्य मर जाता है तो यह भी अंतिम संकर के समय साथ ही जल जाता है।

यह जनेऊ अगले जहान तक हमारी मदद कैसे करेगा।

पंडित जी को गुरु नानक साहिब जी ने समझाया, और कहा पंडित जी अगर आपने मुझे जनेऊ पहनाना ही है तो वो जनेऊ पहनाएं जो गरीबी, अमीरी, ऊंच, नीच सब लोगों से प्यार सिखाये। जिससे जीवन के अंदर दूसरों के प्रति प्यार, सबर, संतोख और दया पैदा हो। जो कीरतगर करते हुए तृष्णा से बचा कर रखे।

गुरु नानक साहिब जी के यह वचन सुनकर सब हैरान रह गए। कईयों ने तो गुरु जी के आगे सर झुका कर माथा टेकना शुरू कर दिया। सब मान गए की गुरु जी के यह वचन सच्चे हैं।

पंडित जी को गुरु नानक साहिब जी ने समझाया, और कहा पंडित जी अगर आपने मुझे जनेऊ पहनाना ही है तो वो जनेऊ पहनाएं जो गरीबी, अमीरी, ऊंच, नीच सब लोगों से प्यार सिखाये। जिससे जीवन के अंदर दूसरों के प्रति प्यार, सबर, संतोख और दया पैदा हो। जो कीरतगर करते हुए तृष्णा से बचा कर रखे।

गुरु नानक साहिब जी के यह वचन सुनकर सब हैरान रह गए। कईयों ने तो गुरु जी के आगे सर झुका कर माथा टेकना शुरू कर दिया। सब मान गए की गुरु जी के यह वचन सच्चे हैं पर नानक साहिब जी के पिता महिता कालू राम जी बहुत नाराज़ थे की उन्होंने जनेऊ पहनने से मना कर दिया है। और कुल की रीत को भांग कर दिया है।

भाई मरदाना जी रबाब से मुलाकात

Sikh Ten Guru आर्टिकल को आगे बढ़ाते हुए अब बात करते हैं गुरु साहिब जी की भाई मरदाना से मुलाक़ात के बारे में । समय अपनी चाल चलता गया इस तलवंडी की धरती के ऊपर गुरु नानक देव जी का मिलाप भाई मरदाना जी के साथ हुआ जो की एक रबाबी थे। तलवंडी की इस धरती पर हुआ मेल अंत तक साथ निभाता गया। भाई मरदाना गुरु नानक साहिब जी पक्के साथी साबित हुए।

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गुरु नानक साहिब जी का ग्रहस्त जीवन

15 साल की उम्र में गुरु नानक जी का विवाह रन्धावे के बाबा मूलचंद जी की बेटी सुलखनी के साथ किया गया। इस तरह गुरु जी पूरे ग्रहस्ती बन गए पर ग्रहस्त के फ़र्ज़ों को निभाते निभाते हुए, अपने सुखों को मारते हुए भी वह संसार के सिरजनहार संभंधि अपने फ़र्ज़ों को पूरी तरह निभाते गए। कुछ समय बाद गुरु जी के घर दो पुत्रों का जन्म हुआ।

इसी तरह गुरु नानक साहिब जी ने सांसारिक जीवों को सच्चे धर्म का उपदेश देते हुए अच्छा समय सुल्तापुर की धरती पर व्यतीत किया। कुछ समय इन्होने सुल्तापुर की धरती पर नवाब दौलत खान लोधी के मोदी खाने में नौकरी करके भी बिताया। गुरु जी ने इस काम को बड़े ही उत्साह के साथ किया और योग्यता के साथ निभाया। यहाँ उनके जिज्ञासुयों को एक गोल पूरा तोल, सच्चा व्यवहार करने की और आये गए के साथ प्रेम भरा बर्ताव करने की शिक्षा दी।

बड़े सब कर्मचारियों को गुरु जी एक आँख के साथ देखते और उन्हें पूरा हिसाब करके रकम देते। जहाँ गुरु जी ने अपने इस नौकरी के फ़र्ज़ को इस तरह पूरी योग्यता, सफलता और शोभा सहित निभाया, वहीँ आप सिरजनहार का भी नित ध्यान करते थे।

गुरु जी का बेईं नदी में अलोप होना

एक दिन गुरु जी रोज़ाना की तरह बेईं नदी में स्नान करने के लिए गए पर काफी समय बहार ना आये। परिवार के सभी सदस्य, श्रद्धालु बहुत परेशान हो गए, इतिहासिक स्रोतों के अनुसार गुरु साहिब जी बेईं नदी में प्रवेश करने के बाद तीसरे दिन कब्रिस्तान में प्रकट हो गए। और यह एलान किया की ना कोई हिन्दू ना कोई मुसलमान।

पुरातन जन्मसकीय अनुसार ये पता चलता है की इस समय दौरान गुरु जी एकांत में बैठे करतार के ध्यान में जुड़ गए। उनकी आत्मा अकाल पुरख के ध्यान में सचखंड पहुँच चुकी थी। वहां गुरु जी को हुक्म हुआ था की इस तरह एक जगह बैठ कर सच्चे धर्म का उपदेश करना काफी नहीं है। इस उपदेश की सारी दुनिया को ज़रूरत है।

सारी पृथ्वी झूठ, बैर, विरोध, ईर्ष्या,क्रोध, अहंकार, लालच की अग्नि में जल रही है। इसलिए इसको नाम रुपी अमृत के साथ शांत करो और सांसारिक जीवों को सच्चे धर्म वाली एकता, प्यार, परुपकार वाली सच्ची सुच्ची रेहनी की कला सिखाएं। देखें तो सही पृथ्वी का हाल क्या है। हुक्म मान कर गुरु साहिब जी ने पृथ्वी को देखा और कहा। जो भाई गुरदास जी ने बहुत सुन्दर अपनी रचना में ब्यान किया है :-

बाबा देखे ध्यान धर जलती सब पृथ्वी दिस आयी

गुरु नानक देव जी गुरमति जीवन जाँच के मोदी ही नहीं थे वह एक महान प्रचारक भी थे।

गुरु नानक देव जी की चार उदासियाँ यानी यात्राएं

सिखों के इस लेख Sikh Ten Guru में सिर्फ सिखों के विषय को ही नहीं ब्यान किया गया बल्कि उनके सम्पूर्ण जीवन को भी दर्शाया गया है। अपने समय की मनुष्यता की गिरती हुई अवस्था का सही अंदाजा लगाने के लिए चारों और यात्रायें यानी उदासियाँ आरंभ की।

पहली उदासी (यात्रा)


सन 1497 ईस्वी को गुरु जी ने सुल्तानपुर की धरती पर अपना प्रचार दौरा आरंभ किया। मनुष्य जाती को कर्मकांडों से मुक्त करने के लिए एक परमात्मा की याद को हृदय में बसाने और अपने जीवन को सफल करने के मकसद के साथ गुरु जी ने अपनी पहली प्रचार फेरी पूर्व के देशों में की।

जिसमें उन्होंने अहमदाबाद, लाहौर, मुल्तान, ब्यास, सतलुज, मलेरकोटला, सुनाम, कुरक्षेत्र, करनाल, पानीपत से होते हुए हरिद्धार, दिल्ली, मथुरा, अयोध्या, लखनऊ, बनारस, अलाहाबाद, पटना, बंगाल जैसे इलाकों में धर्म स्थानों में जाकर लोगों को सत्य का मार्ग दिखाया।

तक़रीबन 12 वर्ष बाद गुरु नानक देव जी अपने देश पहुंचे। इस उदासी में भाई मर्दाना रबाबी उनके साथी थे, पहली उदासी का समय 1497 ईस्वी से 1509 ईस्वी तक था। इस उदासी में गुरु जी ने धार्मिक अनुयाईओं के साथ मुलाकात करके उनको अपने फ़र्ज़ के प्रति जागरूक किया।

दूसरी उदासी (यात्रा)


दूसरी उदासी गुरु जी ने दक्षिण दिशा की तरफ की, जिसका समय 1510 ईस्वी से 1514 ईस्वी तक था। जो लगभग पांच साल का समय बनता है। इस समय दौरान गुरु नानक साहिब जी ने सरसा, बीकानेर, जयपुर, जोधपुर, जैसलमेर, अजमेर, उज्जैन, इंदौर, पोंडिचेरी, मद्रास जैसे स्थानों पर गए थे।

सब लोगों को परमात्मा के सिमर में अपने आप को जोड़ने का सन्देश दिया। इन इलाकों में यात्रा करते हुए हाड़ के महीने सन 1514 ईस्वी को अपने देश वापिस आ गए थे। इस उदासी में भाई मर्दाने के इलावा कुछ Sikh सेवक भी गुरु नानक साहिब जी के साथ मौजूद थे।

तीसरी उदासी (यात्रा)


अब बात करते हैं नानक देव जी की तीसरी उदासी की। जिसको गुरु जी ने 1515 ईस्वी में शुरू किया था। ये उदासी जो की उत्तराखंड की उदासी के नाम से प्रसिद्ध है, इस उदासी के समय गुरु नानक देव जी कश्मीर होते हुए, गाँव कलानौर, गुरदासपुर, दसुया, कोटला, काँगड़ा, चम्बा, कीरतपुर, पिंजौर, शिमला, देहरादून, बद्रीनाथ, सुमेर पर्वत जैसे इलाकों में गुरु जी ने अपने मुबारक चरण डाल कर वहां रहने वाले लोगों को सत्य के मार्ग का पांधी बनने का रास्ता दर्शाया।

1515 ईस्वी से 1518 ईस्वी तक का चार साल तक का समय गुरु जी ने इन्ही इलाकों में रह कर अपने तीसरे प्रचार दौरे को मुक़्क़मल किया।

चौथी उदासी (यात्रा)


गुरु नानक देव जी की आखरी और चौथी उदासी जो की पश्चिम की उदासी के साथ प्रसिद्ध है दरसल ये प्रचार दौरा मुसलमानी इलाको के साथ संभदित है। यह उदासी सन 1519 ईस्वी में शुरू हो कर 1524 ईस्वी के आखिर में लगभग 6 सालों में ख़त्म होती है। इस उदासी में गुरु जी हड़प्पा, सिंध और बलोचिस्तान के रास्ते से होते हुए ईरान, तुर्किस्तान, रूस तक पहुंचे। और फिर वहां से कंधार, पेशावर, काबुल होते हुए वापिस करतारपुर आ गए।

इन्ही चार उदासियों में गुरु नानक साहिब प्रचलित स्थानों, सम्प्रदायों के घर में जाकर, तीर्थों पर जाकर इस निकरि हुई हालत के मुखदर्शक ही नहीं रहे बल्कि वहां उनको पवित्र स्थानों पर श्रद्धा से जुड़े लोगों को उनकी निकरि अवस्था से चेतन भी करवाते थे। और वहां उनके अंदर एक नयी जाग्रति, नया जीवन उत्साह भी पैदा कर देते।

इसी कारण भाई गुरदास जी लिखते हैं की, जहाँ भी गुरु नानक देव जी चरण रखते हैं वहां धर्मशाला भाव पूजा अस्थान बन जाता है।

यह सब गुरु जी के प्रचार का ही तो नतीजा है की आप जिसको भी मिलते उनको अपने शब्दों से मोह लेते थे। गुरु जी के साथ जो भी विचार, विमर्श करता वो हमेशा आपका ही बन कर रह जाता था। गुरु जी ने चार उदासियाँ (यात्राएं) की, इन उदासियों के दौरान अलग अलग धर्मों के लोगों के साथ संवाद रचाये और उनको सत्य पहचानने का रास्ता दिखाया।

इन उदासियों के साथ उपरान्त गुरु जी ने करतारपुर नगर बसाया और यहीं खेतीबाड़ी के साथ साथ एक रब्ब, एक लोकाई का उपदेश देते रहे।

भाई लैहणा जी से मुलाकात

सिख श्रद्धालुओं में भाई लैहणा जी का नाम एक व्यक्ति की तरफ से गुरु जी के पास आया और गुरु चरणों की धुल प्राप्त करके भाई लेने से गुरु अंगद देव जी बन गए। भाई लैहणा जी 1532 ईस्वी से लेकर 1539 ईस्वी तक सात साल गुरु चरणों और साध संगत की सेवा में बने रहे।

गुरु नानक देव जी ने भाई लेना जी को जीते जी गुरुगति प्रदान करके यह बता दिया की Sikh Dharam की पैगंबरी अज़मत की परख में योग्यता प्रथम है ना की जन्म।

जहाँ गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के 70 साल में बचपन, जवानी और चार उदासिओं से अलग अलग देशों के धार्मिक आगुओं से विचार चर्चा की। गुरु जी ने मानवता को परमात्मा के साथ जोड़ा और एक नए पंथ की नींव रखी। गुरु नानक जी ने 19 रागों में बाणी का उच्चारण भी किया जिसमें मूलमंत्र, चोपड़े, पोडियां, श्लोक, पहरे आदि शामिल हैं। यह सारीं बानियाँ जुगों जुग अटल साहिब श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में दर्ज हैं।

संक्षेप में अगर कहा जाए तो लगभग 974 शब्द गुरु नानक साहिब जी ने 19 रागों में उच्चारण किये। अपना अंतिम समय नज़दीक आते देख गुरु जी ने गुरु अंगद देव जी को गुरुगति प्रदान करके 1539 ईस्वी में ज्योति ज्योत समा गए। महोबत्ती रंग में रेंज हिन्दू और मुसलमान दोनों धर्मो के लोग गुरु जी की अंतिम यात्रा में शामिल थे।

तो ये थी पूरी जानकारी श्री गुरु नानक देव जी के जीवनकाल अब Sikh Ten Guru आर्टिकल को आगे बढ़ाते हुए बात करते हैं बाकी गुरुओं की।

Sikh Ten Guru

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[su_dropcap]2.[/su_dropcap]गुरु अंगद देव जी – 2nd Guru of Sikh (Guru Angad Dev Ji)

अंगद देव जी सिक्खों के दूसरे गुरु थे। गुरु नानक देव जी ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया था। उनका जन्म फिरोजपुर, पंजाब में 31 मार्च, 1504 को हुआ था। इनके पिता का नाम फेरू जी और माता का नाम माता रामो जी था। इनका विवाह खीवी नामक महिला से हुआ था। इनकी चार संतानें हुई, जिनमें दो पुत्र दासू व दातू और दो पुत्रीयां अमरो व अनोखी थी।गुरु अंगद देव को ‘लहिणा जी’ के नाम से भी जानते हैं।

[su_dropcap]3.[/su_dropcap]अमर दास जी – 3rd Guru of Sikh (Guru Amardas Ji)

सिख धर्म के तीसरे गुरु अमर दास जी थे। उनका जन्म 23 मई, 1479 को अमृतसर के एक गांव में हुआ था। उनके पिता जी का नाम तेजभान एवं माता जी का नाम लखमी था। उन्होंने जाति प्रथा, ऊंच -नीच , कन्या -हत्या , सती प्रथा जैसी कुप्रथाओं को समाप्त करने में बहुत योगदान दिया। 11 सालों तक सेवा के बाद गुरु अंगद देव जी ने उन्हें गुरुगद्दी सौंप दी।1 सितंबर, 1574 में उनका निधन हो गया।

[su_dropcap]4.[/su_dropcap] गुरु रामदास जी – 4th Guru of Sikh (Guru Ramdas Ji)

सिख धर्म के चौथे गुरु रामदास जी थे।इनका जन्म लाहौर में हुआ था। जब ये छोटे थे तभी उनकी माता का देहांत हो गया था और जब सात वर्ष की उम्र में थे तभी उनके पिता का भी निधन हो गया। फिर वे अपनी नानी के साथ रहने लगे। ये सिखों के तीसरे गुरु अमरदास जी के दामाद थे। इनका स्वभाव बहुत सरल और अच्छा था इसलिए सम्राट अकबर भी उनका बहुत सम्मान किया करते थे।

इन्होंने 1577 ई. में ‘अमृत सरोवर’ नाम के एक शहर की स्थापना की, जिसका नाम बाद में बदलकर अमृतसर हो गया।

[su_dropcap]5.[/su_dropcap] गुरु अर्जन देव जी – 5th Guru of Sikh (Guru Arjan Dev Ji)

श्री गुरु अर्जन देव जी सिखों के पांचवें गुरु बने। इनका जन्म 15 अप्रैल, 1563 में हुआ था और ये सिख धर्म के चौथे गुरु गुरु अर्जन देव देव जी के पुत्र थे। इन्होंने अमृतसर में ‘हरमंदिर साहब’ (स्वर्ण मंदिर ) बनवाया। 30 मई 1606 को इनका निधन हो गया।

[su_dropcap]6.[/su_dropcap] गुरु हरगोबिन्द सिंह जी – 6th Guru of Sikh (Guru Hargobind Singh Ji)

सिखों के छठे गुरु गुरु हरगोबिन्द सिंह जी हुए। सिख धर्म के पांचवें गुरु अर्जन देव जी को फांसी दिए जाने के बाद उन्होंने गद्दी संभाली। ये उन्हीं के पुत्र थे। इन्होंने ही सिखों को अस्त्र -शस्त्र का प्रशिक्षण लेने के लिए प्रेरित किया और सिखों को योद्धा का चरित्र दिया।इनका निधन 1644 ई . में कीरतपुर , पंजाब में हुआ।

[su_dropcap]7.[/su_dropcap] श्री गुरु हरराय जी – 7th Guru of Sikh (Guru Har Rai Ji)

गुरु हरराय जी सिखों के सातवें गुरु थे। इनका जन्म 16 जनवरी, 1630 ई . में पंजाब में हुआ था। गुरु हरराय जी छठे गुरु के पुत्र बाबा गुरदिता जी के छोटे बेटे थे। इनका विवाह किशन कौर जी के साथ हुआ था। इनके दो पुत्र गुरु रामराय जी और हरकिशन साहिब जी थे। सन् 1661 ई . में  गुरु हरराय जी की मृत्यु हो गई थी।

[su_dropcap]8.[/su_dropcap] श्री गुरु हरकिशन साहिब जी – 8th guru of Sikh (Guru Harkishan Sahib ji)

सिखों के आठवें गुरु हरकिशन साहिब जी हुए। इनका जन्म 7 जुलाई, 1656 को किरतपुर साहेब में हुआ था।  इन्हें बहुत छोटी उम्र में ही गद्दी प्राप्त हो गई थी। 30 मार्च सन्, 1664 को चेचक से बीमार लोगों की सेवा करते हुए उनकी मृत्यु हो गई।

[su_dropcap]9.[/su_dropcap] श्री गुरु तेग बहादुर सिंह जी  – 9th guru (Guru Teg Bahadur Singh Ji)

गुरु तेग बहादुर सिंह जी सिखों के नौवें गुरु हुए। इनका जन्म 18 अप्रैल, 1621 को पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ था। औरंगजेब ने बहुत कोशिशें की लेकिन गुरु तेग बहादुर सिंह जी को इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं करवा पाया और बाद में उनका शीश काटने का हुक्म दिया गया। 24 नवंबर, 1675 को धर्म की रक्षा के लिए इन्होंने कुर्बानी दे दी।

[su_dropcap]10.[/su_dropcap] गुरु गोबिन्द सिंह जी (10th Guru Gobind Singh Ji)

Sikh Ten Guru और अंतिम गुरु गोबिन्द सिंह जी बने। इनका जन्म 22 दिसंबर, 1666 ई . को पटना में हुआ था और ये गुरु तेग बहादुर जी के पुत्र थे। इन्हें मात्र  नौ साल की आयु में ही गुरुगद्दी मिल गई थी।

गुरु जी के बड़े बेटे बाबा अजीत सिंह और दूसरे बेटे बाबा जुझार सिंह ने चमकौर के युद्ध में शहादत प्राप्त की और दो छोटे बेटों बाबा जोरावर सिंह और फतेह सिंह को नवाब ने जिंदा दीवारों में चुनवा दिया था। गुरु गोबिन्द सिंह जी ने गुरु प्रथा को समाप्त कर गुरु ग्रंथ साहिब को ही गुरु मान लिया था।

निष्कर्ष

ये सभी Sikh Ten Guru हुए और उसके बाद से आज तक सभी सिख गुरु ग्रंथ साहिब जी को ही अपना गुरु मानते हैं और उसमें दी गई शिक्षाओं का अनुसरण करते हैं। इन सभी गुरुओं ने इंसानियत और धर्म की रक्षा के लिए अपने और अपने परिवार के प्राण न्योछावर कर दिए।

इस आर्टिकल से आपको सिखों के बारे में बहुत सी जानकारी मिली होगी जो कि आपको कई प्रतियोगी परीक्षाओं में भी काम आएगी। इस जानकारी को अपने दोस्तों के साथ शेयर कीजिए ताकि वे भी सिख समुदाय का गोरवपुर्ण इतिहास जान पाएं। धन्यवाद्!

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